Horror Story In Hindi
Hostel Bhutiya Kahani
कड़कड़ाती ठण्ड के बीच जोरो की बर्फ बारी हो रही थी। तभी हाईवे से कट मारते हुए सरसराते हुए एक गाड़ी मुर्दा घर के बहार आकर रुकी। गाड़ी के रुकते ही उस गाड़ी के दोनों ही दरवाजे खुल गए।
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उसमे से एक औरत प्रियंका और एक आदमी मोहन निकलकर सीधे मुर्दा घर के अंदर भागे। जहाँ पहले से ही एक इंस्पेक्टर रोहित मौजूद था, और उसके साथ ही उस मुर्दा घर का इंचार्ज भी, जो नशे में धुत बीड़ी पी रहा था
इंचार्ज – तुम्हारा ही लड़का मरा है, क्या ? इधर आओ लाश दिखता हूँ।
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इंस्पेक्टर – ऐ – ऐ पागल हो गया है, क्या ? कैसी बात कर रहा है तू , बच्चा मरा है उनका।
इंचार्ज – साहब यह रोज किसी न किसी का कोई मरता रहता है। किस – किस का ख्याल करू।
इंस्पेक्टर – चर्वी चड़ तुझे , चल साइड हट।
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इंस्पेक्टर उन आदमी और औरत से – माफ़ किजिएगा , आइये इधर आइये।
इंस्पेक्टर माफ़ी मांगते हुए उन्हें सफ़ेद चादर से ढकी लाश के पास ले गया
प्रियंका – आपने तो अस्पताल के लिए कहा था, और अब मुर्दा घर में एक लाश के पास खड़ा कर दिया। ये कैसा मजाक कर रहे है आप मेरे साथ विक्रम को तो हम अभी एक हफ्ते पहले हॉस्टल छोड़ कर आये थे , वो कितना खुश भी था वहां, अब यूँ यहां मुर्दा घर में क्या करने आये हैं हम।
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मोहन – प्रियंका – प्रियंका सम्भालों अपने आप को। इन्होने बस चेहरा पहचानने को ही बुलाया है बस।
मोहन प्रियंका को समझा ही रहा था, की इतने में पुलिस ने लाश के मुँह से चादर हटाई , जिसे देखते ही प्रियंका अपने बेटे विक्रम का नाम लेकर चीखते हुए रोने लगी ,
जवान बेटे की लाश को देखकर मोहन भी अपने आप को रोक नहीं पाया, और कूट – कूट कर रोने लगा, फिर न जाने क्यों मोहन को क्या सुजा, वो सीधा उठा और इंस्पेक्टर के गिरेवान को पकड़ते हुए दिवार मैं शटा दिया।
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मोहन – बता , बता क्या हुआ मेरे बेटे के साथ बोल वर्ना में खड़े – खड़े तेरी वर्दी उतरबा दूंगा।
मोहन के यूँ बतमीज़ी पर उतर जाने के बाद इंस्पेक्टर जो अब तक शांत था वो एकदम से भड़क उठा। फिर उसने मोहन के हाथों को झटकते हुए कहा .
इंस्पेक्टर – होश में रहकर जवान खोलिये मोहन खन्ना , में आपके टुकड़ो पर पलने बाला कुत्ता नहीं हूँ , जो आपकी धमकियों से डर जाऊंगा। अगर अभी आपने अपना बेटा नहीं खोया होता तो में आपको बताता की खड़े – खड़े और भी क्या करा जा सकता है। खेर आपके बेटे की लाश विक्टोरिया हॉस्टल के पीछे बरामद हुई है
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प्रियंका – मेरा बेटा पढ़ने गया था वहां। और अब लाश बनकर लौटा है आखिर ऐसा क्या होता है ? वहां।
इंचार्ज – मौत का तांडव – मौत का तांडव होता है वहां, ये कोई पहली लाश नहीं जो वहां से आयी है , पहले भी कई मौत हो चुकी है वहां। पर गुत्थी कोई नहीं सुलझा पाया। जिसने भी कोशिश की मौत ही पायी।
इंस्पेक्टर – खन्ना सर आपसे वादा रहा , ये गुत्थी में ही सुलझाऊंगा और उन्हें जेल तक पहुंचा कर ही दम लूंगा। फिर चाहे उसके लिए कुछ भी हो।
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इंचार्ज – जवान हो , जोश है कर लो कोशिश , बाकी समझदार तो दूर ही रहते हैं वहां से।
इतना कहता हुआ मुर्दा घर का वो इंचार्ज बहार चला गया। और जाते जाते इंस्पेक्टर को ये चुनौती भी दे गया। वो क्या कोई भी इस केस को नहीं सुलझा सकता। क्यूंकि इसके पीछे बहुत कुछ रहस्येमयी है। लेकिन इंस्पेक्टर भी अब ये ठान ही लेता है की वो अब सच का पता लगाकर ही रहेगा।
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इसलिए वो अगले ही दिन हॉस्टल में एक कॉलेज student बनकर पहुंच गया। लेकिन यहां पोहोचते ही उसे बोहोत अजीब लगता है और वो सोचने लगता है , कि एक पहाड़ी के अंत में यूँ खाई के पास भला हॉस्टल कौन बनाता है।
भला ऐसी जगह पर कोई अपने बच्चे को कैसे छोड़ सकता है ,वो भी खन्ना जैसे लोग। हॉस्टल को देखते ही ये विरान जगह लगती थी। रोहित हॉस्टल में जा ही रहा होता है। की तभी उसे हॉस्टल का एक चौकीदार रोकता है।
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चौकीदार – कहाँ चले बाबू
रोहित – हॉस्टल में एड्मिशन लेना है।
चौकीदार – एड्मिशन लेना है, तो रात में आइये। दिन में यहाँ कोई काम नहीं होता है
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रोहित – क्या? दिन में कोई काम नहीं होता, क्यूँ ?
चौकीदार – अरे नहीं होता है मतलब नहीं होता है, क्या , क्यों , कैसे ज्यादा सवाल न करो बाबू। चले जाओ।
रोहित – बड़े अजीब नियम कानून हैं।
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रोहित ने अभी अपनी बात पूरी भी नहीं की थी इतने में वो चौकीदार वहां से निकल गया। रोहित ने भी सोचा अगर पूरा सच जानना है तो ठन्डे मिजाज से काम लेना होगा , इसलिए वो रात होने का इंतज़ार करने लगता है। वहीँ हॉस्टल के गेट पर बैठे – बैठे सुबह से शाम हो जाती है। पर वहां कोई हलचल नहीं होती।
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यहां तक की शाम के बाद रात ने भी अपनी घन्घोर चादर ओढ़ ली थी। लेकिन हॉस्टल अब भी उतना ही विरान था। जैसे वहां कोई रहता ही न हो। रोहित को अब ये यकीन होने लगा था की इस हॉस्टल में अब कुछ भी नहीं है। इसलिए वो वहां से निकलने को होता ही है, कि तभी पीछे से एक आवाज आती है।
चौकीदार – कहाँ जा रहे हो बाबू अंदर आओ , एड्मिशन नहीं लोगे।
रोहित को ये आवाज जानी पहचानी लगी , पीछे मुड़कर देखा तो अंदर वही चौकीदार था जो सुबह बहार था , पर रोहित तो पूरे दिन बहार बैठा था फिर वो चौकीदार अंदर कब गया ,
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चौकीदार – ज्यादा सोचो न बाबू एड्मिशन लेना है, तो अंदर आ जाओ।
रोहित उस चौकीदार के पीछे-पीछे चल देता है ,पर गेट से लेकर अंदर रिसेप्शन तक जाते हुए कुछ भी Normal नहीं था, सबसे पहले तो रोहित ये देखकर तंग था कि अब तक जो हॉस्टल पूरी तरह से अँधेरे की चपेट में था उसके हर कमरे लाइट जल रहीं थी।
और खिड़कियों से परछाइयाँ साफ़ नजर आ रही थी। जैसे अंदर कोई न कोई है। पर भला ऐसा कोनसा हॉस्टल होता है जहाँ दिन में कोई नहीं और रात में इतनी हलचल। हॉस्टल के रिसेप्शन पर चश्मा लगाए एक मोटा हट्टागट्टा इन्सान बैठा था
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चौकीदार – साहब ये बाबू एड्मिशन के लिए आये हैं , मैं चलता हूँ दरवाजे पर।
रिसेप्शन पर बैठे उस आदमी ने बिना कुछ कहे एक फॉर्म और रूम न. 307 की चाबी आगे बढ़ा दी। और रोहित कुछ पूछने को हुआ ही था। उस आदमी ने ऊँगली से दूसरी तरफ इशारा किया , जहाँ rule बोर्ड लगा हुआ था। रोहित रूल बोर्ड के पास पहुँच गया , पहले रूल को पढ़कर उसका दिमाग घूम गया ,
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उस बोर्ड पर पहला रूल था , कि यहाँ कोई भी किसी से बात नहीं कर सकता सिर्फ अपने काम से मतलब रखें। दूसरा ये की भूलकर भी किसी के कमरे में न जाए और ना ही किसी को आने दें। तीसरा ये की एक बार अपने कमरे में जाने के बाद बहार न निकलें।
रोहित – ये कैसे रूल हैं।
जोर से कहते हुए रोहित जैसे ही पीछे की और मुडा वहां कोई था ही नहीं। न ही दूर मैन गेट पर चौकीदार और न ही रिसेप्शन पर वो आदमी रोहित बिना कुछ और सोचे अपने कमरे की और चल दिया। रास्ते में सभी कमरे ऐसे बंद थे,
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जैसे वहां कोई रहता ही न हो, फिर वो अपने कमरे 307 में पहुंचकर अपना बैग रखकर अपने कमरे को चारो तरफ से देखने लगा। तभी बहार से ज़ोर से किसी के चीखने की आवाज आयी। और रोहित उसी चीख के पीछे अपने कमरे से बहार निकल गया , लेकिन उसे कोई नहीं दिख रहा था।
हॉस्टल की लाइटें अब पहले की तरह शांत नहीं थी वल्कि थरथरा रहीं थी। इधर रोहित ये सोचकर हैरान था कि इतनी तेज़ चीख सुनकर भी सबकुछ शांत कैसे था। जैसे किसी को कोई फर्क ही नहीं पढ़ रहा हो। कोई अपने दरवाजे को खोलने को तैयार ही नहीं था इसलिए रोहित खुद सामने के दरवाजे पर दस्तक देने लगा।
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रोहित – भाई में रोहित इस हॉस्टल में नया आया हूँ। जरा दरवाजा खोलो।
अंदर से कोई जवाव नहीं आया। रोहित तीसरे फ्लौर के अभी कमरों के दरवाजो को आजमा लेता है कोई बहार निकलने को तैयार ही नहीं था। फिर अंत में वो एक दरवाजे को धक्का देकर तोड़ देता है। अंदर कमरे का हाल ऐसा होता कोई आग लगी हो। ज़मीन पर एक कंकाल पड़ा था जिसका आधा शरीर जला हुआ था।
रोहित उल्टे पाऊँ बहार निकलता है तभी देखता है की इस पूरे हॉस्टल में आग लगी हुई है और कमरे के अंदर से धुँआ निकल रहा है। जिन कमरों में दस्तक देने पर भी कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था अब हर कमरे से दरवाजा खोलने को अंदर से कोई चीख रहा था मदद मांग रहा था की दरवाजा खोलो,
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अंदर आग लगी है पर उन्हें कोई सुनने बाला नहीं था , रोहित ने जैसे ही एक दरवाजा खोलने की कोशिश की तभी आग की एक लपट उसकी तरफ बढ़ी और उसके कपड़ो में आग लग गयी रोहित शरीर पर लगी आग की लपटों को बुझाते हुए ऐसे घबराया की वो कब सीढ़ियों पर पहुँच गया उसे पता ही नहीं चला,
और तभी वो सीढ़ियों से फिसलता हुआ निचे गिर गया उसके कपड़ो पर लगी बुझ गयी, पर अब वो पूरी तरह घायल हो गया था , दर्द से कर्राते हुए उठ ही रहा था तभी उसकी नजर चौकीदार पर गयी।
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और वो उसी की तरफ बढ़ गया रोहित ने उसे आवाज भी दी पर वो पीछे मुडा ही नहीं बस भूत बने आग को देखता ही रहा था और उसके आगे उस रिसेप्शन वाले आदमी की आधी जली लाश पड़ी थी।
रोहित – चाचा क्या हो रहा है यहां ? और ये आग यहां कैसे लगी। और इन्हे क्या हुआ, अरे किसी को मदद के लिए क्यों नहीं बुला रहे आप।
चौकीदार – मदद के लिए बहुत देर हो गया है बाबू , अब तो ये आग रोज चुबन बनकर सीने में जलती है।
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इतना कहते ही वो चौकीदार पीछे मुडा , और रोहित के होश उड़ गए , क्युकी वो भी बुरी तरह जला हुआ था।
रोहित – अरे ये क्या हुआ आपको चलिए, यहां से निकलते हैं और हॉस्पिटल चलते हैं।
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चौकीदार – बाबू मुर्दों को डॉक्टर की ज़रुरत नहीं होती।
रोहित – मतलब ?
चौकीदार – मतलब जानना है बाबू , तो ये देखिये फिर
इतना कहते ही चौकीदार रोहित को गिरेवान से पकड़कर उसे सबसे कॉरिडोर की सबसे आखिरी दिवार पर शटा देता है , और फिर हर कमरे से लाशें किसी ज़ोम्बी की तरह बहार निकलने लगी और धीरे -धीरे रोहित की और बढ़ने लगी। पर रोहित दिवार में ऐसे चिपक गया था , कि हिल भी नहीं पा रहा था।
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रोहित – क्यूँ कर रहे हो तुम मेरे साथ ऐसा, क्या बिगाड़ा है मेने तुम लोगो का, अरे तुमने तो उस बच्चे को भी नहीं छोड़ा जिसे तुमने कल मारा था।
चौकीदार -रोते हुए बोलै – क्यों छोड़ता बाबू , क्यों छोड़ता बताइये। जब हम लोगो को जींदा जलाकर मारने बाला भी एक बच्चा ही है।
बात दरअसल करीब 6 साल पहले की है जब इस इलाके में सिर्फ एक ही हॉस्टल था विक्टोरिया हॉस्टल काफी नाम था इस हॉस्टल का जिसे देखते हुए किसी और ने भी यहां एक नया हॉस्टल खोला जिसका नाम भी विक्टोरिया हॉस्टल रख लिया,
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और जब पुराने विक्टोरिया वालों ने इसका विरोध किया, तो उन्होंने कहा ठीक है कल से आपको सिर्फ एक ही विक्टोरिया हॉस्टल देखने को मिलेगा। उसकी इस बात को सुनकर विक्टोरिया हॉस्टल वाले निश्चिंत हो गए। उन्होंने सोचा वो हॉस्टल का नाम बदल कर कुछ और रख लेंगे क्या रखेगें ये अगली सुबह पता चल ही जायेगा।
लेकिन उस सुबह से पहले एक रात आयी और उसी रात विक्टोरिया हॉस्टल में एक नया लड़का एड्मिशन लेने आया। रिसेप्शन से उसे कमरा नंबर 307 दे दिया, इस बात से अनजान कि ये लड़का नए हॉस्टल वालों ने भेजा है। जिनसे आधी रात में पहले हॉस्टल के सभी कमरों को भर से बंद करा, और फिर पूरे हॉस्टल में आग लगा दी।
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जिसे वॉर्डर्न और चौकीदार भी नहीं रोक पाए और सब उस आग में झुलसकर मर गए। अब उन्हें क्या पता था कि कल से सिर्फ एक विक्टोरिया हॉस्टल दिखने का ये मतलब था। तबसे लेकर आजतक जो भी रात को विक्टोरिया हॉस्टल की तलाश में निकला उन्हें यही विक्टोरिया हॉस्टल मिला और बदले में मिली उन्हें मौत।
क्युकी विक्टोरिया हॉस्टल में जिसने आग लगाई वो तो बच निकला, इसलिए जो भी रात को यहाँ आता है वही विक्टोरिया हॉस्टल में मरे सभी लोगों की नजरों में वो ही उनका हत्त्यारा बन जाता है ऐसे मैं इंस्पेक्टर रोहित क्या हुआ होगा ये बताने की ज़रूरत तो नहीं।
हैना……….
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