The Real Mother Story Moral
हेलो दोस्तों ये कहानी The Real Mother Story Moral है जो कुछ वर्षों पहले उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद के एक कस्बे की बेबस औरत की सच्ची घटना पर आधारित कहानी है।
जानिए उसके परिवार ने संतान की चाह में माँ को कैसे बनाया चुड़ैल
एक माँ की कहानी उसकी बेटी की ज़ुबानी
मेरा नाम नीता है ये कहानी मेरी , मेरी माँ और मेरे परिवार की है में जब छोटी थी तो मेरे परिवार में सब खुशी से रहते थे लेकिन में हलके हलके बड़ी हुई और एक दिन मैं कानों पर हाथ रखकर लगातार इस दर्दनाक आवाज को नजरअंदाज करने की कोशिश कर रही थी। मेरा पूरा वजूद थर-थर कांप रहा था। मगर वह आवाज तो जैसे दिल को दहला रही थी।
पानी, पानी प्यास लगी है। दो घूंट पानी पिला दो, नीता बेटी मेरे पास आओ। मुझे प्यास लगी है। पिछले एक घंटे से थोड़ी थोड़ी देर बाद मुश्किल भरी जबान से मेरा नाम लिया जा रहा था। मगर मैं तो जैसे इस कदर डरी हुयी थी, कि अपने कमरे से बाहर कदम रखते हुए भी डर लग रहा था कि अगर मैं बाहर गई तो मेरे साथ क्या हो जाएगा।
मैं उस आवाज को चाह कर भी नजरअंदाज नहीं कर सकती थी। मैंने तकिया सर के नीचे से हटाया और अपने सर के ऊपर रख लिया ताकि मैं वह दर्दनाक सिसकियां ना सुन सकूं जो मेरी नींद और मेरा चैन चुरा रही थी । न जाने दादी कहां चली गई थी और बाबा भी तो उस वक्त काम पर गए हुए थे।
तीनों छोटी बहनें भी स्कूल गई हुयी थी। न जाने क्यों बार-बार आती आवाज सुनकर मेरा दिल मोम होने लगा और मैं हिम्मत करके कमरे से बाहर निकली और घर के कोने में बने उस कमरे में जाने लगी, जिसमें कई साल पहले जानवरों को बांधा जाता था।
The Real Mother Story Moral
लगातार आती आवाज और फिर दर्द से उठती चीख ने तो जैसे मेरे कदमों पर जादू सा कर दिया था। मैं उस आवाज का दर्द महसूस करके दादी और बाबा के मना करने के बावजूद कमरे की तरफ दौड़ी चली जा रही थी। घर में शिवाय मेरे कोई नहीं था। मैंने धीरे से लोहे की लटकी हुई जंजीर को खोला और लकड़ी के बने दरवाजे पर जरा दबाव बढ़ाया तो दरवाजा खुलता चला गया। मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था।
जैसे ही दरवाजा खुला सामने मेरी मां नींद मैं दीवार की टेक लगाए बैठी आंखें मूंदकर पानी मांग रही थी। बिखरे बाल पीला जर्द रंग आंखों के नीचे गहरे-गहरे काले हल्के चेहरे पर जब दरवाजा खुलने से रोशनी पड़ी तो मां ने आंखें मसल कर खोलते हुए मेरी तरफ देखा ।
मुझे अपने सामने देखकर उनके चेहरे पर मुश्किल से मुस्कुराहट फैली थी। मगर एक बेजान सी मुस्कुराहट थी। चेहरा पूरी तरह खून से तर था। मगर यूं लगता था जैसे खून अब उनके चेहरे पर सूख चुका हो। इनके मुस्कुराने से वह काफी खोफनाक लग रही थी। रीड की हड्डी में सनसनी सी दौड़ी थी।
अगर दादी का कहा, सच हुआ तो,,,,,,,,,,,,
मां में अभी भी कोई चुड़ैल हुई तो,,,,,,,,,,,,
वह मुझे कच्चा चबा जाएगी।
मेरा दिल जोर से धड़का था। पहले तो जी चाहा कमरे से बाहर चली जाऊं। मगर उसके बावजूद मुझे मां की हालत देखकर उन पर तरस आ रहा था। क्या से क्या हालत हो चुकी थी उनकी, मेरे अंदर से एक आवाज आई तो मैं बगैर कुछ भी सोचे फौरन पानी का गिलास भरकर ले आई ताकि मां को पानी पिला सकूं।
उनके पास जाते हुए मुझे डर भी लग रहा था। कहीं वह मुझे नुकसान ना पहुंचा जाए। यह आज पहली बार नहीं हुआ था। पिछले 8 दिनों से मेरी मां के साथ यही सब होता रहा था। मैं उन तक पहुंची तो वह बिल्कुल नॉर्मल थी। पानी देखकर फौरन आगे को बढ़ने लगी।
शायद बहुत प्यास लगी थी उन्हें, मैंने डरते-डरते मां को सहारा देकर उठाया और पानी का गिलास उनके लबों से लगा दिया। उनका वजूद कपकपा रहा था, वह तेजी से सांस ले रही थी। मैंने उनको थामकर पानी पिलाया तो कपकपी की वजह से चंद घूंट ही उनके हलक से नीचे उतर पाए थे। बाकी सारा पानी तो मेरे कपड़ों पर गिर चुका था।
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मेरा खौफ अब काफी हद तक कम हो चुका था। मुझे अपनी मां की हालत देखकर रोना आ रहा था मेरी मां ऐसी तो ना थी जैसे मेरे बाबा और दादी ने उनके हालत कर दी थे। मेरी सिसकी बड़ने लगी तो माँ ने बमुश्किल गर्दन फेरकर मेरी तरफ देखा । उनके लिए तो इस वक्त गर्दन घुमाकर मेरी तरफ रुख करना भी सबसे दुश्वार काम था। उनके गले पर रस्सीयों के निशान थे। आज जिस तरह दादी ने मां के गले में तंग रस्सी बांधकर उन्हें बांधा था, उसके बाद मां की गर्दन पर जख्म हो चुके थे।
वह हकलाते हुए मुझे आधे अधूरे शब्दों में कहने लगी कि मेरी बच्ची रोना नहीं। मैं बिल्कुल ठीक हूं। कैसी मां थी। वह इस हालत में भी कह रही थी कि ठीक है मेरा दिल उनकी हालत देखकर किसी परिंदे की तरह तड़पा था। उनके घने लंबे बाल, जो उनकी कमर तक आते थे आज दादी ने उन्हें कोयलो पर रखकर जला डाले थे।
अभी तक उनके बालों से जलने की बू आ रही थी जो जलकर बेढंगे तरीके से उनकी गर्दन तक आ चुके थे। उनकी सफेद दूध सी रंगत अब सफेद नहीं रही थी। उन 8 दिनों में उनका चेहरा नील के निशानो से सांवला हो चुका था। उनका उनका जिस्म दर्द और जख्मों से चूर था। वजूद में कपकपी जारी थी और फिर भी वह कह रही थी कि वह ठीक है।
मै सिसककर उनके गले लग कर रो पड़ी थी। आज बड़ी मुश्किल से मां से मिलने का मौका हाथ आया था। वरना दादी मुझे मां के करीब भी भटकने नहीं देती थी। दादी का कहना था कि मां पर एक चुड़ैल का साया है। मगर आज जब मां के पास आई तो मुझे ऐसा कुछ भी महसूस नहीं हुआ था। मुझे लगा शायद दादी ने जो कुछ बोला, वह झूठ था और या फिर वह चुड़ैल मां के शरीर को छोड़कर जा चुकी है और अब मां बिल्कुल ठीक हो गई है।
यही सोचते हुए मैं गिलास रखने के लिए जाने लगी तो माँ ने फौरन मुझे पकड़ कर वापस खींच लिया। मैं बोखला कर पलटी और मां के करीब जा गिरी। मगर जब नजर मां के चेहरे पर पड़ी तो एक चीख मेरे हलक से निकली, क्योंकि मां का चेहरा बहुत बुरी शक्ल में बदल चुका था,
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दरअसल मेरी दादी को पोते की ख्वाहिश थी और हम चारों बहनें ही थी। मैंने जब से होश संभाली थी दादी को यही ताना मां को देते देखा था कि मनहूस औरत मुझे पोता भी नहीं दे सकी , मेरी मां की जबान पर हर वक्त एक चुप्पी रहती थी। वह चुपचाप घर के काम करती रहती थी। बात सिर्फ दादी की नहीं थी। बाबा का व्यवहार भी मां से बहुत शक्त था। वह बात-बात पर मां से लड़ते झगड़ते थे और गालियां बकते रहते थे। यह बात यहीं तक सीमित नहीं थी। अब तो मां बेटा, मां पर जुल्म के पहाड़ तोड़ते रहते थे।
एक बार मैं गहरी नींद सो रही थी। जब कानों में चीख की आवाजें आने लगी। पहले तो लगा शायद ख्वाब सा है मगर जब अपने करीब से छोटी बहन की सिसकियों की आवाज सुनी तो फौरन जागने लगी। छोटी बहन मुझे बाजू से झिझोंड़कर उठा रही थी और रो-रोकर ,सहमे हुए अंदाज में कह रही थी कि दीदी जल्दी उठो बाहर बाबा और दादी माँ को बहुत मार रहे हैं।
मां दर्द से चीख रही है। दादी मेरी बात नहीं सुन रही। तुम ही उठकर उन्हें रोको छोटी बहन बहुत ज्यादा डरी हुई थी। उसके आंसू उसके गाल पर बह रहे थे।
मैं फौरन उठी और दिमाग को नींद से जगाते हुए उसकी कही बातों को समझने की कोशिश करने लगी। मां की लगातार सिसकने की आवाजें आ रही थी। वह रो-रोकर कह रही थी कि महेश क्या करने लगे हो मेरे साथ आखिर मैंने क्या किया है। मेरा कसूर क्या है। मेरी गलती क्या है क्यों मुझे तुम लोग मारते रहते हो। मत बांधो मुझे, मुझ पर ऐसा जुल्म मत करो। भगवान के कहर से डरो मां की आंगन से आती आवाजों ने मेरा दिल दहला कर रख दिया था।
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मैं शायद अभी भी नींद में थी। इसलिए चक्कर से आने लगे। मगर उसके बावजूद फौरन उठी और भागकर कमरे से निकलती हुई आंगन में पहुंची। जैसे ही मैंने आंगन में कदम रखा तो सामने का मंजर देखकर मेरे होश उड़ गए। मेरी मां को दादी और बाबा ने चारपाई पर बांध रखा था। उनके हाथ पैर चारपाई पर रस्सियों से बांधे हुए थे। दादी ने मां के मुंह पर एक के बाद एक ना जाने कितने थप्पड़ मारे थे। उनका चेहरा सुर्ख हो चुका था। दादी के हाथों के निशान उनके चेहरे पर बन चुके थे।
मैं फौरन दादी के पास गई और उन्हें रोकने लगी। आखिर वह मां के साथ ऐसा क्यों कर रही थी। मैं कुछ समझ ना सकी। मगर तभी बाबा ने तो हद ही पार कर दी। एक मोटा डंडा हाथ में उठाया और गुस्से से आगबबूला होकर मां पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए। माँ दर्द से बिलबिला उठी।
उनकी चीखें आसमान तक पहुंच रही थी मेरे तो हाथ पांव कांपने लगे थे। मैं अपनी जगह पर खड़ी होकर चीखने लगी थी , मैं तुरंत भागकर उन तक पहुंची और बाबा के हाथ से डंडा छीनने लगी। मगर बाबा ने मुझे तुरंत पीछे हटा दिया और एक बार फिर मां की टांगों पर डंडे बरसाने लगे।
मां तो बेहोशी की हालत में हो चुकी थी। बाबा ने मां को इतना मारा कि बाबा खुद भी मां को मार-मार कर थक गए थे। दादी मां सिराहने खड़ी बाबा को ओर ज्यादा भड़कते हुए कह रही थी कि और मारो इसे और मारो इतना मारो के इसके अंदर की सारी बलाएँ बाहर निकल आए।
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मुझे यह मंजर समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर क्या गलती थी मेरी मां की, जो सुबह सवेरे बाबा और दादी मां को इस कदर मार रहे थे। मां के चेहरे और टांगों से खून रिसने लगा था। मैं फौरन मां के पास जाने लगी तो दादी मुझे बाजू से पकड़ कर दूर फेंक दिया और बोली के खबरदार जो मां के पास गई तो, तुम्हारी मां को चुड़ैल चिपटी हुयी है जिसको निकालना बहुत जरूरी है वरना हम सबकी जान को खतरा हो सकता है। दादी की बात सुनकर मेरे होश उड़ चुके थे।
मैंने एक नजर मां को देखा और फिर रोते हुए दादी को, मैं बोली कि ऐसा कुछ नहीं है। मेरी मां बिल्कुल ठीक है। मगर दादी गुस्से से बोली कि तू बड़ी है या मैं, मैं बेहतर जानती हूं क्या सही है और क्या गलत है। अगर इस हालत में तू अपनी मां के पास गई तो तुझे भी अपने जैसा बना देगी, बाबा भी दादी का फेवर करते हुए मुझे मां से दूर करने लगे और फिर कमरे में भेजकर दरवाजा बंद कर दिया।
मैं और मेरी छोटी तीनों बहन मां की यह हालत देख कर रो रही थी। मुझे यह बात समझ नहीं आ रही थी कि आखिर अचानक बाबा को क्या हो गया था जो वह मां के साथ ऐसा व्यवहार कर रहे थे। कल तक तो सब कुछ ठीक था। मेरी माँ बेहद खूबसूरत थी।
मुझे याद है कि जब मैं छोटी थी तो बाबा मां का बहुत ख्याल रखते थे। दोनों आपस में खुश भी रहते थे। मगर यह बात मेरी दादी से बर्दाश्त नहीं होती थी। वह हर वक्त मां के खिलाफ बाबा के कान भर्ती रहती। पहले पहल तो बाबा नजरअंदाज करते रहते। मगर फिर उनके दिल में भी मेरी मां के लिए नफरत के जज्बात उभरने लगे। वह पहले तो माँ की बुराई करने लगते। लेकिन फिर एक बार उनको थप्पड़ मार दिया ।
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मेरी मां को नानी के घर भी जाने नहीं देते थे किचन में अगर मां से कोई काम खराब हो जाता तो, मेरी दादी मां की चुटिया पकड़ कर खींच देती। उन्हें मारने लगती मेरी मां रोने लगती। लेकिन दादी को रहम ना आता ओर ना ही बाबा को, मैं कमरे की खिड़की से बाहर का मंजर बखूबी देख सकती थी। मगर काश मैं मां के पास जाकर उनको इस जुल्म से बचा सकती, माँ दर्द से चीख कर बेहाल हो चुकी थी। बाबा मां को मार-मार कर अब डंडा एक तरफ फेंक चुके थे।
उसी वक्त दादी किचन में गई और फिर कुछ देर बाद जब बाहर निकली तो उनके हाथ में सुर्ख लाल मिर्चे थी। उन्होंने एक थाली में उन मिर्चों को रखा और फिर जलते हुए अंगारों को उन मिर्ची पर रखकर उसे मां के सिराहने रख दिया। मां जो दर्द के मारे लंबे-लंबे सांस ले रही थी।
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जब मिर्ची का धुंआ उनकी सांसो से होता हुआ फेफड़ों तक गया तो वो खांसने लगी। बाबा और दादी ने अपने चेहरे के आगे एक मोटा कपड़ा रख लिया था। मेरी मां बेचारी खास-खास कर बेहाल हो चुकी थी। उनकी आंखें बिल्कुल सुर्ख हो चुकी थी।
उनसे तो सांस लेना भी दूभर हो गया था। वह धुंआ सीधा उनके चेहरे पर जा रहा था। दादी ने तो जुल्म की आज हद ही पार कर दी थी। मैं रो रो कर हाथ बांधते हुए बाबा और दादी की मिन्नतें कर रही थी कि प्लीज इन्हें छोड़ दें। इनकी गलती क्या है, वह किस गुनाह की सजा दे रहे हैं, मां को मिर्ची की धूनी देते हुए दादी ने उन पर कुछ पढ़ कर फूंक मारनी शुरू कर दी और फिर उसके बाद किसी पानी का छिड़काव करके उन्हें यूं ही पड़ा छोड़ दिया।
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आज जो कुछ बाबा ने किया था उसके बाद तो मुझे बाबा से बहुत ज्यादा डर लगने लगा था। आखिर वह मां पर ऐसा जुल्म कैसे कर सकते थे। बाबा मेरे करीब आए और मुझे अपने पास लाकर बोले कि बेटी अब अपनी मां के करीब बिल्कुल भी मत जाना। उसके अंदर एक चुड़ैल आ चुकी है। वह हम सबके लिए खतरा है। बस जितना हो सके, खुद भी उससे दूर रहो और अपनी बहनों को भी मां से दूर रखो। बाबा की आंखों में सक्ति थी। वह मुझे समझाने के बाद वहां से चले गए और फिर बेहोशी की हालत में दादी और बाबा ने मां को उठाया और उसे एक पुराने कमरे में छोड़ने चले गए।
वह कमरा जिसमें चंद साल पहले दादाजी के जानवर रहा करते थे। वह मां को वही गिरा कर खुद बाहर निकल आए और दरवाजे को कुंडी लगा दी। मैं माँ से मिलना चाहती थी, मगर मुझे डरा धमका कर मना कर दिया गया। मां सारा दिन बाड़े में दर्द से कराहती रही
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मेरी माँ को हर रोज इसी तरह सताया जाता और चुड़ैल बताकर उनके ऊपर तरह तरह के जादू टोने किये जाते। उनका शरीर जबाब दे चूका था और एक दिन वो इन लोगो के कहर से आजाद हो गई।
मै पूछती हूँ क्या कसूर था मेरी माँ का, कि उनके साथ ऐसा किया जाता था।
किया एक औरत होना इतना पड़ा पाप है या फिर एक औरत होकर उसके गोद में बेटा न होना पाप है।
Note – ये कौन सा समाज है जहाँ अपने घर के बेटे के लिए लड़की पढ़ी लिखी चाहिए संस्कारी चाहिए वही दूसरी ओर अपने घर में लड़की पैदा नहीं होनी चाहिए।
मै पूछती हूँ उस समाज से की लड़का ना होने से उस माँ का क्या कसूर है जिसके साथ लड़का न होने पर ऐसा व्यवहार क्या जाता है।
दोस्तों लड़का होने की समस्या कोई बड़ी नहीं जिसकी बजह से आप ये भूल जाते हो की जिस पर हम जुल्म कर रहे है वो भी आपकी माँ बहन की तहर है अगर आपके घर की माँ बहन के साथ ऐसा हो तो कितना बुरा लगता है
Sceince के हिसाब से भी लड़का न होने की समस्या औरत से नहीं आदमी से होती है इसलिए जागरूक करो अपने आप को
अगर आपको हमारी Story पसन्द हो तो दोस्तों और फैमिली को Share करें।
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Very heart touching story. And also inspirational.
Thank you